भरत चक्रवर्ती छह खण्ड जीतकर जब वृषभाचल पर्वत पर अपना नाम लिखने गये, तब उन्हें अभिमान हुआ कि मैं ऐसा चक्रवर्ती हुआ हूँ, जिसका इस पर्वत पर नाम रहेगा। लेकिन पहाड़ पर पहुँचने पर उन्होंने देखा कि वहाँ तो उनसे पहले बेशुमार चक्रवर्ती आकर अपना नाम लिख गये हैं। नया लिखने को जगह तक न थी। यह देखकर उनका गर्व खर्व हो गया। आखि़र एक नाम मिटाकर अपना नाम लिखा।